श्री गणपति का दस दिवसीय उत्सव हमारे भारत का विशेष उत्सव है | पुरे वर्षभर व्यक्ति इस उत्सव की प्रतीक्षा करता है | ये ऐसा उत्सव है जिसमें स्त्री, पुरुष, बच्चे, वृध्द सभी बराबरी से सामाजिक, धार्मिक परंपरा को निभाने के लिए बढकर हिस्सालेते है | परंपरा का स्वरुप युग के अनुसार, सामाजिक बदलाव के अनुसार बदल गया हो, परंतु इसके पीछे की लोक कल्याण की भावना आज भी यथावत है | पुराणों में भगवान गजानन की अनेकानेक लीला कथाएं आती है | पुराणों में प्रत्येक देवों ने भगवान गणपति की आराधना की | चाहे वह गजानन के रुप में हो, वक्रतुण्ड का स्वरुप हो, या विघ्न विनाशक हो | सभी युगों में गणपति की पूजा सर्वमान्य रही है | वे गुण तत्व विवेचक, आदिदेव, गजमुख, दैत्यों को विनाश करनवाले है | उनकी सुझबूझ और विवेक से देवतागण आनंद से जीवन व्यक्तीत करते है | प्रत्येक युग में उनके वाहन अलग-अलग रहे है | सतयुग में गजानन सिंह पर आरुढ होकर महोत्क्ट विनायक के नाम से प्रसिध्द हुए | त्रेतायुग में मंगलमोद दाता गणेश मयूर पर सवार मयुरेश्वर के नाम से प्रसिध्द हुए | द्वापर युग में ये गौरीपुत्र के नाम से प्रख्यात हुए और कलियुग में ये धर्मरक्षक अश्वरोही धूमकेतू के नाम से प्रसिध्द हुए |
    पुराण कहते है, ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों भी गणपति की आराधना करते है | एक बार वर्तुमुख ब्रम्हा की सृष्टी के कर्ता होने का अहंकार आ गया वे सोचने लगे मैं ही सर्वस्व हूँ | मेरी शक्ति ही सर्वोच्च है क्योंकि इस सृष्टि को बनाने वाला मैं ही हूँ | परंतु सृष्टि पर अनेक विघ्न आने लगे तो ब्रम्हाजी चिंतित हो गए इस सृष्टि का विघ्न कैसे दूर हो | उन्होंने जब एकदंत की उपासना की तब श्री गणेश ब्रम्हा की उपासना से संतुष्ट हुए और उन्हें विवेक प्रदानकर सृष्टि की रचना के लिए ज्ञान दिया | हमारे पास ज्ञान कितना भी हो, परंतु विवेक नहीं है, तो उस ज्ञान का कोई प्रभाव नहीं है |
    शिवपुराण में कहा गया है कि आसुरी शक्तियों से पूर्ण त्रिपूर को भस्म करने के लिए भगवान शिव ने शर-संधान किया | धनुष को दृढता से थामे हुए ये लक्ष्य स्थिर कर रहे थे | परंतु लक्ष्य स्थिर नहीं हो रहा था तब देवाधिदेव ने आकाशवाणी सुनी हे अखिलेश्‍वर ! जब तक आप विनायक की पूजा नहीं करेंगे | तब तक इस त्रिपुर को नष्ट नहीं कर पाएंगे | यह सुनकर भगवान अखिलेश ने भद्रकाली को बुलाकर गणेशजी का पूजन किया | श्री विष्णु ने कैटभ राक्षसों का संहार करने के पूर्व भगवान शंकर के कहने पर विघ्न विनाशक विनायक की पूजा की थी | हमारी संस्कृति केसभी मंगल कार्य गणेश पूजा से प्रारंभ होते है | गणपति आराधना से हमारे अंदर एक विश्वास जागृत होता है कि हमारी पूजा निर्विघ्न संपन्न होगी | पूजा करते समय विवेक देनेवाले साक्षात गणपति हमारी भूलों को अपने उदर में छुपा लेंगे |
    श्री गणपति के आठ अवतार मानले जाते है | "वक्रतुण्डावतर" देह ब्रम्हा को धारण करनेवाला | वह मत्स्यासुर का वध करनेवाला सिहांरुढ माना गया है | "एकदंतावतार" देहि ब्रम्हा का धारक है | वह मदासुर का अर्थ्ज्ञात हमारे अंतर के मद का नश करनेवाला मूषक वाहन पर सवार बताया | "महोदर" नाम ज्ञान ब्रम्हा का प्रकाश देनेवाला है | मनुष्‍य में ज्ञानकी महत्त्वपूर्ण है | उनका वाहन मुषक है | "गजानन" अवतार सांख्य ब्रम्हा को धारण करनेवाले है | इसी को सांख्य उपयोगी सिध्दि दायक माना गया है | यह भी लोभासुर अर्थात लोभ को नष्ट करनेवाला मूषक वाहन पर है | "लंबोदर" अवतार क्रोधासुर अर्थात क्रोध का दमन करनेवाला सत्य स्वरुप शक्ति ब्रम्हा शक्ति ब्रम्हा है | इसका वाहन भी मूषक है | विकट नाम से प्रसिध्द अवतार कामासुर यानि काम का संहारक है | वह मयूर वाहन पर है और सौम्य ब्रम्हा का धारक है | "विघ्नराज" का वाहन शेषनाग है जो विष्णु ब्रम्हा को धरण किए है | यह ममतासुर का विनाशक है | "ध्रुमवर्ण" नाक अवतार अभिमान असुर का नाश करनेवाला है यह शिव ब्रम्हा स्वरुप है यह भी मूषक पर सवार है | श्री गणपति के आठो अवतार हमारे षडरिपुओं और अज्ञानता, अविवेक को नष्ट करनेवाल है | जिस रुप में हम उनकी आराधना करें वे सभी फलदायी और कल्याणकारी है | इसलिए हमारे सनातन धर्म में गणपति की पूजा सर्वमान्य रही है और आगे भी रहेगी |
|| जयहिंद, जयभारत ||
 
प.पू. सदगुरु श्री भय्यूजी महाराज
प्रणेता
श्री सदगुरु धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट
इंदौर (मध्यप्रदेश)
 
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