स्वतंत्रता दिवस हमें हमारे देश के उन महान स्वतंत्र्यवीरों का स्मरण कराता है, जिन्होंने भारत माता को परतंत्रता की बेडियों से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया | उन्होंने भारत भूमि को माँ की संज्ञा देकर और अनेकों बलिदान देकर भारतमाता के सच्चा सपूत होने का धर्म निभाया | आज जब हम अपने स्वतंत्र्यवीरों की ओर देखते है, तो हमें वंदेमातरम के माध्यम से अपने कर्तव्यों की याद आती है | वंदेमातरम का मंत्र हमें जीवन की सार्थकता-राष्ट्रीयता की ओर ले जाता है | वंदेमातरम एक ऐसा मंत्र है जो आपको भय को समाप्त कर एक सूरक्षा कवच प्रदान करता है, जिससे हमारे मन में यह बोध उपत्न होता है कि,
अगर मैं सत्य हूँ, तो मुझे कौन रोक सकता है,
अगर मैं ज्ञान हूँ, तो मेरी सीमाएं कौन बांध सकता है,
और अगर मैं आनंद हूँ, तो मुझे परमानंद तक जाने कौन रोक सकता है |
    आज हमें वंदेमारतम के मंत्र को समझने की आवश्यकता है | ये मंत्र आपको भयमुक्त समाज की और प्रेरित करता है |
    हमारे लिए यह गौरव का विषय है कि, हमारे देश में लगभग 70 प्रतिशत युवाशक्ती है | आज आवश्यकता है इस युवा शक्ती के सही नियोजन की | परंतु हमारे लिए बडे दु:ख की बात है, कि हमारी युवा पीढी आधुनिकता का अंधानुकरण कर कृत्रिमता का आवरण ओढती जा रही है | हम जहाँ एक ओर मानवता के माध्यम से, सदविचारों के माध्यम से एक ज्ञाननिष्ठ एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज की संकल्पना कर रहे है, वही हम मात्र अच्छे नागरिक बनने के विषय में नही सोच रहे है |
    आजाद भारत में आज हम जिस एकलवादी संस्कृति और क्षेत्रवाद की संस्कृति को जन्म दे रहे है, वह हमारे समाज कों कबीले की संस्कृति में विभाजित कर रही है | इसका सीधा प्रभाव हमारे राष्ट्र पर पड रहा | बडी संख्या में धार्मिक आयोजनों में निरंतर बढोत्तरी होने और सामाजिक संगटनों की गतिविधियाँ बढने के बाद भी हम सामाजिक ग्लानि को दूर नहीं कर पा रहे है | इसका मुख्य कारण यह है कि आजाद मिलन के बाद हमने मात्र स्वयं से प्रेम किया |
    आज का युवा विकास के नाम पर जानबूझकर कृत्रिमता का आवरण ओढता जा रहा है, ताकि वह पिछडा हुआ न दिखें | हम श्रीराम की छवि का वर्णन करते तो है, परंतु उस राम के पुरुषार्थ को हम अपने जीवन में आत्मसात नहीं करते | हम स्वयं से इतना प्रेम करने लग गए है कि हमने अपने परिवार को भी नकारना प्रारंभ कर दिया है | अगर हम अपने परिवार को नकारेंगे तो हम स्वाभाविक रुप से अपने समाज से भी दूर होते जाएंगे | यह बात निश्चित है कि जो व्यक्ति समाज से प्रेम नहीं करता वह व्यक्ति राष्ट्र से भी प्रेम नहीं कर सकता |
    मानव को जागृत रखने के लिए श्रध्दा की भावना दी गई है | श्रध्दा का तत्व वह तत्व होता है, जो कृत्रिमता को दूर कर मानव हे अंतर्मन में सदाचरण रुपी एक ऐसा बोध देता है कि जैसा मेरा राम-वैसा मेरा हृदय और जैसा मेरा हृदय वैसा मेरा राम | अर्थात जैसे आप अंदर से हो, वैस बाहर से हो जाओ और जेसे बाहर से हो, वैसे अंदर से हो जाओ | यदि आप सदाचरण करते है, तो निश्चित तौर पर आप एक संस्कृति से लेकर एक सभ्यता और सभ्यता से लकर एक विकसित एकात्म वाले राष्ट्र का निर्माण करते है | यही संस्कृति, सभ्यता बनकर आगे चलती है और राष्ट्र की एकात्मता और विकास का कार्य करती है |

जयहिंद जय भारत !
प.पू. भय्यूजी महाराज
प्रणेता
श्री सदगुरु धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट
इंदौर (मध्यप्रदेश)
 
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